Monday, February 16, 2009

क्यूँ जो चाहिए वो उस पल मिलता नही,
हर इच्छा पूरी होने के बाद भी इच्छाएं ख़तम होती नही।
मनतैँ मांगे इंसान, पर पूरी होने में वक्त लगता है,
तब तक इंसान इतिहास बनता दीखता है।

चाहत की सीमाएं कीसने मापी हैं अब तक,
धड़कनों की रफ़्तार नही जान पाया कोई अब तक।
दीळ की बात बस दिल तक पहुंचाई नही जाती,
दिए को छोड़ मानो अकेले चली हो बाति।

क्यूँ कुछ पन्ने कोरे ही रह जाते हैं,
चुने हुए रंग बेकार पड़े रह जाते हैं।
जल जाती है इंसान की चीता भी,
कोरी राख ही केवल बाकी रह जाती है।