Thursday, February 5, 2009


बादलों से एक चेहरा अकसर पुकारा करता है,
मुझे पल-पल खिड़की पर बुलाया करता है।
तेरे लिए कान्हा ने भेजा है मुझको,
रोज़ ये कहकर बहलाया करता है।

न गुड़िया न खेल-खइलौने भाते मुझको,
उसकी बातों ने जीता है मेरे मन को।
न जानूँ न पहचानूँ पर मैं तो उसको,
कैसे मैं अब समझाऊँ इस नटखट दइल को।

रोज़ कहाँ आना है यह बतला जाता है,
मेरी चइंताओं को बस वो ले जाता है।
बैठी हूँ आएगा मुझको लेने भी वो,
सच कर जायेगा मेरे वो हर सपने को।

भेज रही पैगाम तुम्हे तुम पढ़ लेना,
बइना पते की चिट्ठी है यह तुम ढूंढ लेना।
आने वाला वक्त न जाने क्या लायेगा ,
इन लम्हों के गीत मगर वो भी गायेगा।













क्यूँ दइल की बात जुबान पर आती नही,
मन की गहराइयों से नइकल पाती नही।
टूटते बनते रह जाते हैं उम्र भर रिश्ते,
ज़िन्दगी को कभी कइनारे लेइक्न मइलते नही।

कौन है खइवैया मेरी नाव का आज मुझे बतलाओ,
अतीत के पन्नो को पलटकर उसे मेरे पास ले आओ।
न आए तो कहना मैं याद करती हूँ,
अब तो बस यादों के सहारे ही जइया करती हूँ।

मुख पर मुस्कान, आंखों में आंसू रखती हूँ,
बारिश के मौसम में उन्हें बहाया करती हूँ।
दइल की बातों को आज भी मन में ही रखती हूँ,
अतीत के पन्नो को मइटा, लो आज मैं एक नई कविता लइखती हूँ।

Monday, February 2, 2009

क्यूँ आए तुम जीवन में मेरे
कर गए उजाले जहाँ थे अंधेरे।
क्यूँ जगाई वो आस, जइसका अस्तित्व ही न था,
क्यूँ जगाई वो प्यास , जइसे बुझाने का अमृत ही न था।
मेरे तो थे ही नही तुम कभी भी
पर फइर भी दइल को प्यारे हो अभी।
जाओगे जब दूर, जीना हो जायेगा मुश्किल
अकेले ही ढूँढनी पड़ेगी जीवन की मंजील।
शीशे की एक दीवार समक्ष है अभी,
लाखों नज़रें तुम पर हैं अभी।
क्यूँ चाहूँ मैं तुमको अपने पास,
क्यूँ सुनना चाहूं तुम्हारी आवाज़।
अनजाना है , अलग सा है,
ये नया नया सा एहसास।

कहना था तुमसे कुछ पर लव्ज़ जैसे मइलते ही नही ।
दइल की आवाजों को कान जैसे मइलत ही नही ।

पंख लगाके उड़ना था सपनो को मेरे ,
लिक्न , ना खिड़की है ना दरवाज़ा घर में तेरे ।
पतंग की डोर भी कह आती आकाश से बातें निराली
हवा के कानो में हओ जैसे गुनगुनाती
अपने दइन भर की कहानी ।

सब पहरों को तोड़ एक खिड़की नई बनाओ ना ,
छूना है आकाश मुझे भी , एक डोर नई लाओ ना ...