Monday, February 1, 2010

कौन हो तुम?


हकीकत हो या कोई साया हो,
मन का भ्रम या पलकों का छिपा सपना हो?
किन आशाओं का समंदर हो तुम,
दिल की छिपी इच्छाओं का आईना हो तुम।।

क्यूँ जगाया उन सपनो को दफनाया था जिनको कभी,
इन हांथों से कब्र खोद, हर आंसू मुस्कुराया था तभी।
मानो न मानो एक नया दौर ले आये हो तुम,
सूखी शाखों में जान फूंक कौन जादूगर हो तुम॥

एहसास है यह अजीब लेकिन है अनोखा,
जीवन में आया है मेरे खुशीयों का झोखा।
फिर एक बार जी लूं क्या मैं आज,
अतीत से रुको क्या आ रही है कोई आवाज़?

पल -पल जीवन का चक्रव्यूह क्यूँ खीचें है हमें,
भविष्य नहीं भूत ही सत्य हो गया जैसे।
लौट जाओ हो तुम आए हो जहां से भी,
हर सत्य के आगे मेरी इच्छाएं व्यर्थ हैं अभी॥