Friday, November 13, 2009


रात खामोश है, समां भी तो मदहोश है।
मन मानता नही की तुम्हे जाने दे, मानो अपनी बहो में ही समेट ले।

तुम्हारी खुशबु को बसा लूँ, मैं सांसों में अपनी।
तारों की छाँव में हो पूरी अधूरी ज़िन्दगी अपनी।

मन की आँखों से देख, भावनाओं का करुँ मैं उल्लेख।
तुम्हारे चित को जानकर, करुँ पूजा तुम्ही को प्रभु मानकर।

ले आए हो बहार तुम फिर जीवन में मेरे,
खिल गए हैं पुष्प, एक बार फिर उद्यान में मेरे।

नई आशाओं का पनपा है आज अंकुर,
नई उमंगो के साथ आरम्भ हुआ है यह सफर।
प्रेम के बंधन में यूँ बंधे है दो प्रेमी,
मानो एक दूसरे को ही दे दी हो उन्होंने अपनी ज़िन्दगी।

Thursday, November 12, 2009


पतझड़ के फूलों को भी मुसकुरने का हक़ है,
बिरहा के मेघों को भी बरसने का हक़ है।
इस दिल में दर्द के आलावा भी भाव एक है,
मेरी आँखों में भी सपने अनेक हैं।

चलना चाहो साथ तो चल सकते हो,
अपने सपनो को मेरे साथ जी सकते हो।
भावों का सागर उन्मुक्त धारा पर बह जाएगा,
अधूरी आशाओं का सिन्धु पीछे छोड़ जाएगा।

मिल जायेंगे दो हाथ तो पथ हो जाएगा आसान,
काटों का बिछोना पुष्प की सेज बन जाएगा।
नई डगर पर काफिला निकलेगा अपना,
और अवश्य ही पूर्ण होगा हमारा ये सपना।

तुम्हारे लिए


पाना चाहूं तुमको, पर पाना है मुश्किल।
उड़ती पतंग को धारा से मिलाना है मुश्किल।

आशा हैं आँखों में अब भी लेकिन बाकी,
आओगे तुम एक दिन लेने मुझे साथी।

प्रेम की भाषा तो आँखों से ही बोली जाती है,
मानो दिल से दिल की बात सासों से पहुंचाई जाती है।

लव्जों में करुँ कैसे मैं बयान, दिल में मेरे छिपा है क्या।
लाखों भावनाओं का हार है यह, पिरोया केवल तुम्हारे लिए.