Friday, November 13, 2009


रात खामोश है, समां भी तो मदहोश है।
मन मानता नही की तुम्हे जाने दे, मानो अपनी बहो में ही समेट ले।

तुम्हारी खुशबु को बसा लूँ, मैं सांसों में अपनी।
तारों की छाँव में हो पूरी अधूरी ज़िन्दगी अपनी।

मन की आँखों से देख, भावनाओं का करुँ मैं उल्लेख।
तुम्हारे चित को जानकर, करुँ पूजा तुम्ही को प्रभु मानकर।

ले आए हो बहार तुम फिर जीवन में मेरे,
खिल गए हैं पुष्प, एक बार फिर उद्यान में मेरे।

नई आशाओं का पनपा है आज अंकुर,
नई उमंगो के साथ आरम्भ हुआ है यह सफर।
प्रेम के बंधन में यूँ बंधे है दो प्रेमी,
मानो एक दूसरे को ही दे दी हो उन्होंने अपनी ज़िन्दगी।

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