Thursday, November 12, 2009


पतझड़ के फूलों को भी मुसकुरने का हक़ है,
बिरहा के मेघों को भी बरसने का हक़ है।
इस दिल में दर्द के आलावा भी भाव एक है,
मेरी आँखों में भी सपने अनेक हैं।

चलना चाहो साथ तो चल सकते हो,
अपने सपनो को मेरे साथ जी सकते हो।
भावों का सागर उन्मुक्त धारा पर बह जाएगा,
अधूरी आशाओं का सिन्धु पीछे छोड़ जाएगा।

मिल जायेंगे दो हाथ तो पथ हो जाएगा आसान,
काटों का बिछोना पुष्प की सेज बन जाएगा।
नई डगर पर काफिला निकलेगा अपना,
और अवश्य ही पूर्ण होगा हमारा ये सपना।

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