Thursday, February 5, 2009



क्यूँ दइल की बात जुबान पर आती नही,
मन की गहराइयों से नइकल पाती नही।
टूटते बनते रह जाते हैं उम्र भर रिश्ते,
ज़िन्दगी को कभी कइनारे लेइक्न मइलते नही।

कौन है खइवैया मेरी नाव का आज मुझे बतलाओ,
अतीत के पन्नो को पलटकर उसे मेरे पास ले आओ।
न आए तो कहना मैं याद करती हूँ,
अब तो बस यादों के सहारे ही जइया करती हूँ।

मुख पर मुस्कान, आंखों में आंसू रखती हूँ,
बारिश के मौसम में उन्हें बहाया करती हूँ।
दइल की बातों को आज भी मन में ही रखती हूँ,
अतीत के पन्नो को मइटा, लो आज मैं एक नई कविता लइखती हूँ।

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