Thursday, February 5, 2009


बादलों से एक चेहरा अकसर पुकारा करता है,
मुझे पल-पल खिड़की पर बुलाया करता है।
तेरे लिए कान्हा ने भेजा है मुझको,
रोज़ ये कहकर बहलाया करता है।

न गुड़िया न खेल-खइलौने भाते मुझको,
उसकी बातों ने जीता है मेरे मन को।
न जानूँ न पहचानूँ पर मैं तो उसको,
कैसे मैं अब समझाऊँ इस नटखट दइल को।

रोज़ कहाँ आना है यह बतला जाता है,
मेरी चइंताओं को बस वो ले जाता है।
बैठी हूँ आएगा मुझको लेने भी वो,
सच कर जायेगा मेरे वो हर सपने को।

भेज रही पैगाम तुम्हे तुम पढ़ लेना,
बइना पते की चिट्ठी है यह तुम ढूंढ लेना।
आने वाला वक्त न जाने क्या लायेगा ,
इन लम्हों के गीत मगर वो भी गायेगा।











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