कहना था तुमसे कुछ पर लव्ज़ जैसे मइलते ही नही ।
दइल की आवाजों को कान जैसे
मइलते ही नही ।
पंख लगाके उड़ना था सपनो को मेरे ,
लिक्न , ना खिड़की है ना दरवाज़ा घर में तेरे ।
पतंग की डोर भी कह आती आकाश से बातें निराली
हवा के
कानो में हओ जैसे गुनगुनाती
अपने दइन भर की कहानी ।
सब पहरों को तोड़ एक खिड़की नई बनाओ ना ,
छूना है आकाश मुझे
भी , एक डोर नई लाओ ना ...
hey...lovely poem babes:)
ReplyDeletekeep up d gud wrk...
awaitin ur nxt post
lv ya...bi
Lovely poem :)
ReplyDeleteEnjoyed reading it :)
you seem to be a good poetess :)
cheers,
phoenix wizard :)
hey sweetie...ur poems reflect a pain hidden sumwhere in d deepest crevices of ur hrt...can feel ur pain though...
ReplyDeletetc dear..
bbi