न गुलाब की पत्तियां हैं,
न तेरी साँसों का सहारा।
बस रुखा सुखा सा साया है
तेरी बेरुखी से है जो मुरझाया।।
तेरी एक नज़र को तडपा करता है,
तेरी एक हंसी पे फ़िदा है।
पर तू क्यूँ हर बार ऐसा करता है,
की मानो दिल के टुकड़े हज़ार करता है॥
नाज़ुक है यह बहुत, न रुला इसे,
इसलए तेरे इंतज़ार में
खिड़की पर बैठा करता है,
एक आहट पे तेरी उचका करता है॥
बहुत अच्छी कविता....
ReplyDeleteनाज़ुक है यह बहुत, न रुला इसे,
इसलए तेरे इंतज़ार में
खिड़की पर बैठा करता है,
एक आहट पे तेरी उचका करता है
बेहतरीन..
bahut bahut shukriya
ReplyDeleteWow....thz such a somantic 1....loved ths..:)
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