Thursday, March 25, 2010


रिश्ते

कुछ रिश्तों का कहने को नाम नहीं होता
कुछ रिश्तो में कहने को कुछ नहीं होता।
बन जाता है फिर भी एक बंधन ऐसा
तोड़ने से भी जिसका वजूद समाप्त नहीं होता।

खून के रिश्तों से बढ़कर हैं ये
प्यार के जल से सीचे गए हैं ये।
रंग बिरंगे फूल पनपते हैं जिनमे
पतझड़ का भी इनपे असर नहीं होता।

नाम नहीं तेरा एहसास बसा है इनमे
तेरी खुशबू आती है इन रिश्तों से।
अनजान थी जीवन के इस रूप से अब तक मैं
बाँधा है यह कैसी डोर में तूने।

खोने को क्या है कुछ भी नहीं
पाने को तेरे साथ से है सब कुछ।
हर पल का एहसास नया सा है
ये मेरे जीवन का सबसे प्यारा रिश्ता है।

1 comment:

  1. बहुत उम्दा रचना!

    -

    हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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