Wednesday, February 16, 2011

हम
क्या करे वो इंसान,जो खोया हो खुद में ही?
दुनिया की रीतों का एह्सास ही जिसे नहीं।
मानो मेरी बात जब होता है ये एहसास,
चूर चूर हो जातें हैं ख्वाब, और मिलती नहीं है जीने की आस।

पल पल चाहा जिसको, पल पल देखा जिसको,
एक पल में बढ़ जाता है आगे ठुकराके तुमको।
ना तुम बदले ना वो बदला,
हालातों ने बस दोनों से मुँह है मोड़ा।

कह दिया एक बार में, के साथ जीना होगा मुश्किल,
इस राह पे अब आगे बढ़ना होगा नामुमकिन।
सफ़र में अकेला रह जाता है वो राही,
और पकड़ने के लिए एक भी मिलती नहीं पाती।

हर पल जगती रहती है सोयी आस यही,
काश ना जाओ तुम, रुक जाओ यहीं।
मेरे लिए नहीं, अपने लिए नहीं,
रुको हम दोनों क लिए ही।

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