Monday, February 2, 2009

क्यूँ आए तुम जीवन में मेरे
कर गए उजाले जहाँ थे अंधेरे।
क्यूँ जगाई वो आस, जइसका अस्तित्व ही न था,
क्यूँ जगाई वो प्यास , जइसे बुझाने का अमृत ही न था।
मेरे तो थे ही नही तुम कभी भी
पर फइर भी दइल को प्यारे हो अभी।
जाओगे जब दूर, जीना हो जायेगा मुश्किल
अकेले ही ढूँढनी पड़ेगी जीवन की मंजील।
शीशे की एक दीवार समक्ष है अभी,
लाखों नज़रें तुम पर हैं अभी।
क्यूँ चाहूँ मैं तुमको अपने पास,
क्यूँ सुनना चाहूं तुम्हारी आवाज़।
अनजाना है , अलग सा है,
ये नया नया सा एहसास।

2 comments:

  1. Awesome poem depicting deep feelings :)
    Enjoyed reading it :)
    Keep writing :)

    cheers,
    phoenix wizard :)

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  2. hey,...is poem ke liye jo comment kiya wo 1st poem main chala gaya hai...

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