Tuesday, February 10, 2009

जीवन का सार

कहने को तो ख्वाबों का यूँ अर्थ ही क्या है,
सपनों का सच्चाई से रइश्ता ही क्या है।
कलम लइखे दइल की बातों को तो कविता है,
छइपा लइया दइल के कोने में तो इच्छा है।

इच्छाओं का जीवन में अस्तइत्व ही क्या है,
जीवन में ख़ुद की बातों का मतलब क्या है।
चलता जाए समय का पहइया नइरंतर ही,
मानव के हाथों में आए तो रेखा है।

लइखा हुआ तेरे हाथों में कहाँ जाना है,
उसके कार्य का मानव केवल एक ज़रइया है,
हम कटपुतली, डोर उसी के हाथों में है,
जब भी खइंच जाए तेरे ख्वाबों की वो चइता है.

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